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एक घंटा पहले
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- महाभारत में पांडव योद्धा को मारने के बाद कौरव मनाते थे उत्सव, लेकिन पांडव बड़े-बड़े योद्धाओं को मारने के बाद भी शांत ही रहते थे
जिन लोगों को बड़ी कामयाबी हासिल करनी है, उन्हें छोटी-छोटी सफलता पर जश्न मनाने से बचना चाहिए। अगर छोटी-छोटी बातों पर हम जश्न मनाएंगे तो समय बर्बाद होगा और हमारा ध्यान अपने काम से हट सकता है। महाभारत युद्ध में कौरव और पांडव दोनों सेनाओं के व्यवहार में काफी अंतर था।
कौरव पक्ष में दुर्योधन, दुशासन, कर्ण जैसे योद्धा थे और पांडव सेना से डेढ़ गुनी बड़ी सेना इनके पास थी। इसके बाद भी कौरव हार गए। धर्म-अधर्म के अलावा दोनों पक्षों के बीच लक्ष्य को लेकर अंतर था। कौरव सिर्फ पांडवों को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से लड़ रहे थे।
युद्ध में जब भी पांडव सेना का कोई योद्धा मारा जाता तो कौरव पक्ष में उत्सव का माहौल बन जाता था। जिसमें वे कई गलतियां कर देते थे। दूसरी ओर पांडवों ने कौरव सेना के बड़े योद्धाओं को मारकर कभी उत्सव नहीं मनाया। वे ऐसे अवसर को जीत का सिर्फ एक पड़ाव मानते रहे।
भीष्म, द्रौण, कर्ण, शाल्व, दुशासन और शकुनी जैसे योद्धाओं को मारकर भी पांडवों ने कभी भी उत्सव नहीं मनाया। उनका लक्ष्य युद्ध जीतना था, उन्होंने उसी पर अपना ध्यान टिकाए रखा। कभी भी छोटी सफलता के बहाव में खुद को बहने नहीं दिया। अंत में पांडवों ने कौरवों को पराजित कर दिया।
सीख- छोटी-छोटी सफलताओं में उलझकर बड़े लक्ष्य से ध्यान नहीं हटाना चाहिए।