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- 2020 Is Also Going To Be The Hottest Year, Scientist Said La Nina’s Cooling Effect Is Also Not Effective
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वॉशिंगटन17 घंटे पहलेलेखक: हेनरी फाउंटेन
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- EU की चौंकाने वाली रिपोर्ट, आर्कटिक सागर में नवंबर में बर्फ जमने की रफ्तार धीमी पड़ी
भारत में सर्दियों की शुरुआत के लिए पहचाना जाने वाला नवंबर वैश्विक रूप से सबसे गर्म नवंबर के रूप में दर्ज हो गया है। यूरोपीय यूनियन (EU) की उपग्रह निगरानी सेवा कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस के वैज्ञानिकों ने सोमवार को जारी रिपोर्ट में खुलासा किया है कि नवंबर 2020 में वैश्विक तापमान नवंबर 2016 और नवंबर 2019 से 0.1 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहा। यह 1981 से 2010 के 30 साल के औसत से भी 0.8 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहा।
वैज्ञानिकों के मुताबिक, उत्तरी यूरोप से साइबेरिया और आर्कटिक सागर तक तापमान औसत से ज्यादा है। इस साल अब तक तापमान 2016 (सबसे गर्म साल के रूप में दर्ज) के समान ही रहा है। एजेंसी के डायरेक्टर कार्लो बूनटेम्पो ने कहा कि दिसंबर में भी तापमान एकदम नहीं गिरेगा। जलवायु जोखिमों को कम करने को प्राथमिकता देने वाले नीति निर्माताओं को ये आंकड़े चेतावनी के रूप में देखने चाहिए। वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस वर्ष सितंबर में दुनिया पर ला नीना का प्रभाव शुरू हो गया था।
ला-नीना इफेक्ट भी ठंडक नहीं लाएगा
आम तौर पर ला-नीना का कूलिंग इफेक्ट होता है। पिछले महीने नेशनल ओशियाटिक एंड एटमॉस्फिरिक एडमिनिस्ट्रेशन ने भी कहा था कि ला नीना मजबूत हुआ है, लेकिन वर्ल्ड मीटेरियोलॉजिकल ऑर्गनाइजेशन के वैज्ञानिकों का कहना है कि 2020 सबसे गर्म तीन सालों में से एक बनने की राह पर है। सेक्रेटरी-जनरल पेटेरी टालस के मुताबिक, ला-नीना का कूलिंग इफेक्ट भी गर्मी को तोड़ने के लिए पर्याप्त नहीं होगा।
कॉपरनिकस सर्विस के वैज्ञानिकों का कहना है कि यूरोपीय यूनियन का सैटेलाइट 1979 से आर्कटिक पर नजर रख रहा है। तबसे पहली बार आर्कटिक सागर में नवंबर में बर्फ जमने की रफ्तार धीमी पड़ी है। इसका मतलब है बर्फ की परत पतली होगी और गर्मियों में यह तेजी से पिघलेगी।
इंसानी दखल के कारण औसत वैश्विक तापमान अभूतपूर्व तरीके से बढ़ रहा
क्लाइमेट डायनामिक्स की रिसर्चर मियामी यूनिवर्सिटी की मैरीबेथ एकॉर्डिया के अनुसार, ऐसे कई जलवायु कारक होते हैं, जो ला-नीना के प्रभावों को दबा सकते हैं। सबसे बड़ा कारक इंसान द्वारा जलवायु में बदलाव है। वे कहती हैं इंसानी दखल के कारण औसत वैश्विक तापमान अभूतपूर्व तरीके से बढ़ रहा है। यही मुख्य कारण है। इसलिए तापमान कम करने वाले ला-नीना जैसे प्रभावों के बावजूद हमें लगातार रिकॉर्ड तोड़ तापमान देखने को मिलेगा।
